पुलिस कर्मियों के हिस्से में नहीं है इतवार,थोड़ा रहम करो सरकार
बस काम और काम, नही मिलता पुलिसकर्मियों को आराम

पुलिस कर्मियों के हिस्से में नहीं है इतवार,थोड़ा रहम करो सरकार
बस काम और काम, नही मिलता पुलिसकर्मियों को आराम
पूरनपुर पीलीभीत।अनियमित दिनचर्या और वर्कलोड सिर्फ हमारी कार्यक्षमता को ही नहीं प्रभावित करता बल्कि हमें मानसिक रूप से बीमार भी कर देता है,इसलिए इंसान जीव जंतु सभी एक लिमिट के बाद आराम करते हैं। यहां तक कि वाहन,और मोबाइल कम्प्यूटर से भी ज्यादा वर्क लेंगे तो वह गर्म होकर हैंग करने लगता है। इसलिए उसे भी आराम देने के लिए बन्द करना पड़ता है।इसलिए कोई भी इंसान कितना भी मेहनती क्यों न हो भले ही वह सरकारी अधिकारी कर्मचारी हो आठ से बारह घण्टे काम करने के बाद अपने घर परिवार में अगली सुबह होने तक आराम करता है।शासन ने तो सरकारी विभागों में रविवार की छुट्टियां भी दे रखीं हैं,मगर सरकारी विभागों में सिर्फ पुलिस महकमा ही ऐसा है, जहां 365 दिन की ड्यूटी करने वाले पुलिसकर्मियों को साप्ताहिक अवकाश तक नहीं मिलता। यही कारण है कि अधिकतर पुलिसकर्मी तनाव, ब्लडप्रेशर, शुगर,और चिड़चिड़ेपन का शिकार हो जाते हैं। वह न अपने परिवार को समय दे पाता है,न दोस्तों रिश्तेदारों को, किसी दोस्त रिश्तेदार के शादी ब्याह या मांगलिक कार्यक्रम में शामिल होना तो पुलिसकर्मियों के लिए चांद पर पहुँचने के बराबर मुश्किल होता है। यहां तक माता पिता पत्नी बच्चे बीमार हो जाएं तो भी बमुश्किल से अवकाश मिलता है,वो भी सीनियर अधिकारी के पास अर्जी लेकर जाने पर वो ऐसा मुँह बनाते हैं,जैसे छुट्टी की बजाय उनके संपत्ति में से छुट्टी मांगने वाला पुलिसकर्मी हिस्सा मांग रहा हो,और छुट्टी दे भी दियें तो सात दिन की मांगने पर चार दिन की ही देते हैं।यह समस्या खास तौर पर उन पुलिसकर्मियों के साथ ज्यादा है जो विभाग की रीढ़ माने जाते हैं यानी कांस्टेबल से लेकर इंस्पेक्टर तक,यानी पुलिसकर्मियों की यह जमात जो ‘ऊपर’ से मिले आदेशों के पालन और कानून व्यवस्था के चाक चौबन्दी के लिए दिन रात सड़कों पर गस्त करते रहते हैं। आज यूपी में पुलिसकर्मियों की हालत यह है कि तकरीबन हर पुलिसकर्मी सप्ताह में 80 से 85 घण्टे तक ड्यूटी करता है जबकि पुलिसकर्मियों से सप्ताह में ज्यादा से ज्यादा 45 घण्टे ही ड्यूटी करवाना चाहिए,अगर पुलिसकर्मियों से हर दिन 8 घण्टे ही ड्यूटी ली जाय तो वह अपनी सेहत दुरुस्त रखने के साथ ही परिवार को समय दे पाएगा,और डयूटी भी स्वस्थ मन से करेगा।अन्य विभागों की तरह पुलिसकर्मियों को भी एक साप्ताहिक छुट्टी मिले ताकि वह उस दिन का उपयोग अपने जरूरत के हिसाब कर सके इससे उसको दिमागी सकून मिलेगा, नहीं तो ड्यूटी सिस्टम में भेदभाव,अनावश्यक अधिकारीयों की झिड़कियां काम का बोझ पुलिसकर्मियों की जान लेता रहेगा। सरकार को इसे समझने की जरूरत है क्योंकि यूपी पुलिस में न कोई यूनियन है,न ही कोई इतना खैरख्वाह जो इन पुलिसकर्मियों की समस्याओं को अधिकारियों को बता सके। इसलिए पुलिसबल में सुधार तभी होगा जब पुलिसकर्मियों को इंसान समझा जाये बैल नहीं, और मानवाधिकार आयोग मानव के अधिकार के प्रति वाकई गम्भीर है तो जैसे पुलिसकर्मियों के खिलाफ मानवाधिकार हनन को देखती है, वैसे पुलिसकर्मियों को मानव समझते हुए उनके अधिकार पर सरकार को कटघरे में खड़ा करे।वरना यह माना जाना चाहिए कि सरकार और सिस्टम पुलिसकर्मियों को अघोषित तौर पर जानवर समझते हैं। आज ड्यूटी सिस्टम में सुधार हो गया होता तो और अनावश्यक पुलिस कर्मियों पर दबाव न होता तो सम्भवतः कई पुलिसकर्मियों की बीमारियों मानसिक तनाव से जान बच जाती । डीजीपी साहब अब भी वक्त है,सुधारिये ड्यूटी सिस्टम को, पारदर्शिता लाइए ट्रांसफर पोस्टिंग में दीजिए मातहतों को साप्ताहिक अवकाश वरना आप भी विभाग के सर्वोच्च पद के हाथी दांत ही समझे जाएंगे।